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कलेक्टोरेट में उड़ रही आरटीआई एक्ट की धज्जियां, 14 साल बाद भी जिले में आरटीआई का बुरा हाल।

कलेक्टोरेट में उड़ रही आरटीआई एक्ट की धज्जियां, 14 साल बाद भी जिले में आरटीआई का बुरा हाल

राजेंद्र जायसवाल रिपोर्ट 

जांजगीर-चांपा।पूरे देश में 12 अक्टूबर 2005 को सूचना का अधिकार अधिनियम हुआ था, लेकिन 17 साल बाद भी इस कानून का बुरा हाल है। खास बात यह है कि जिले के सबसे बड़े दफ्तर कलेक्टोरेट जांजगीर में इस कानून की धज्जियां उड़ रही है तो इसके अधीनस्थ सरकारी दफ्तरों का क्या हाल होगा समझा जा सकता है।

बता दें कि कलेक्टोरेट जांजगीर के जन सूचना अधिकारी के समक्ष बीते 1 जून 2023 को आरटीआई एक्ट जनसूचना अधिकारी के समक्ष एक आवेदन प्रस्तुत किया था, जिसमें कार्यालय कलेक्टर (नजूल शाखा) जिला जांजगीर चांपा से जारी एक नो ड्यूस के लिए शासन के जिस पत्र का हवाला दिया गया है, उसी पत्र की प्रमाणित छायाप्रति चाही गई थी। लेकिन कलेक्टर के जानकार जन सूचना अधिकारी ने दफ्तर में उपलब्ध पत्र की प्रमाणित प्रति देने के बजाय चांपा नगरपालिका को पत्र लिखकर उक्त जानकारी प्रेषित करने को कह दिया। जबकि यह मामला चांपा नगरपालिका के बजाय कार्यालय कलेक्टर (नजूल शाखा) जिला जांजगीर चांपा से संबंधित है। इधर, नगरपालिका ने उक्त जानकारी उपलब्ध नहीं होने का हवाला दिया। ऐसे में उपलब्ध जानकारी देने के बजाय कलेक्टोरेट के जनसूचना अधिकारी आवेदक को अब प्रथम अपील करने के लिए कह रहे हैं। अपील करना तो आवेदक का अधिकार है, लेकिन संबंधित जानकारी उपलब्ध होने के बावजूद आवेदक को इस तरह अनाश्वक पत्राचार कर गुमराह किया गया। इस बात को लेकर आवेदक का जनसूचना अधिकारी के साथ जमकर बहस भी हुई, लेकिन वो अपनी गलती स्वीकार करने के बजाय आवेदक को अपील का रास्ता दिखा रहे हैं। इससे समझा जा सकता है कि विवेकपूर्ण जन सूचना अधिकारी आरटीआई एक्ट का किस तरह पालन कर रहे हैं।
अधिकार का हो रहा हनन
आरटीआई एक्ट 2005 के मुताबिक, आवेदन करते समय नगद, ज्यूडीश्यिल स्टाम्प, ई-स्टाम्प, पोस्टल आर्डर आदि के माध्यम से दस रुपए शुल्क लेने का प्रावधान है, लेकिन जिले के ज्यादातर सरकारी कार्यालयों में 17 साल बाद भी शुल्क की राशि दस रुपए नगद लेने की कोई व्यवस्था नहीं है। अपनी नाकामी का ठिकरा जन सूचना अधिकारी आवेदकों पर फोड़ते हैं। नियम होने के बावजूद आवेदक को सिर्फ ज्यूडीश्यिल स्टाम्प, ई-स्टाम्प, पोस्टल आर्डर से ही आवेदन शुल्क जमा करने दबाव बनाते है। इसके चलते ज्यादातर आवेदकों का आवेदन जमा ही नहीं हो पा रहा है, मसलन के उनके अधिकारों का कहीं न कहीं हनन हो रहा है।

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