जिला जांजगीर चांपा में भोजली विसर्जन बड़ी धूमधाम से मनाया गया

 

**भोजली की पावन पर्व: परंपरा, आस्था और सांस्कृतिक धरोहर**

*जिला जांजगीर चांपा*  चांपा में भोजली, जिसे विभिन्न क्षेत्रों में भोजली उत्सव या भोजली पर्व के रूप में जाना जाता है, भारतीय संस्कृति और परंपरा का एक अद्वितीय पर्व है। इस पर्व का विशेष महत्व है और यह धार्मिक आस्था, प्रकृति प्रेम, और सामूहिकता के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। भोजली का पर्व विशेष रूप से मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में व्यापक रूप से मनाया जाता है।

*भोजली  मैया की परंपरा*

भोजली का पर्व मुख्य रूप से सावन माह में मनाया जाता है, जो मानसून के समय का संकेतक है। इस पर्व में महिलाएँ और लड़कियाँ अपने घरों में भोजली के पौधे उगाती हैं। भोजली के लिए मुख्य रूप से जौ या गेहूं के बीजों का उपयोग किया जाता है। इन्हें मिट्टी के छोटे-छोटे पात्रों में पानी डालकर अंकुरित किया जाता है। भोजली के पौधों को घर के आंगन या मंदिर में पूजा स्थल पर रखा जाता है और पूरे परिवार के सदस्य इनके प्रति श्रद्धा भाव से पूजा करते हैं।

*भोजली की पूजा विधि*

भोजली पर्व के दिन महिलाएँ और लड़कियाँ नए वस्त्र धारण करती हैं और भोजली की पूजा के लिए सामूहिक रूप से एकत्रित होती हैं। पूजा के समय भजन, कीर्तन और लोकगीतों का गायन किया जाता है। भोजली के पौधों को सिर पर रखकर महिलाएँ और लड़कियाँ नदी, तालाब या किसी पवित्र जलाशय में विसर्जन करने जाती हैं। विसर्जन के दौरान पूरे रास्ते भोजली गीत गाए जाते हैं और पारंपरिक नृत्य भी किया जाता है।

*भोजली पर्व का सांस्कृतिक महत्व*

भोजली पर्व भारतीय संस्कृति में कृषि जीवन और प्रकृति के प्रति आदर का प्रतीक है। यह पर्व आस्था और सामूहिकता को बढ़ावा देता है। साथ ही, भोजली के माध्यम से नए जीवन के अंकुरण और हरियाली का संदेश भी दिया जाता है। भोजली का पर्व परिवार और समाज के सदस्यों के बीच आपसी प्रेम, सहयोग और सामंजस्य को भी प्रकट करता है।

*भोजली गीत और लोकसंस्कृति*

भोजली पर्व के दौरान गाए जाने वाले लोकगीत इस पर्व की विशेषता हैं। ये गीत जीवन, प्रकृति, और धार्मिक आस्था को दर्शाते हैं। भोजली के गीतों में पवित्रता, प्रेम और समर्पण का भाव निहित होता है, जो इस पर्व की महत्ता को और भी बढ़ा देते हैं

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