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गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की पुण्यतिथि पर कलेक्टर, जनप्रतिनिधियों और गणमान्य नागरिकों ,पत्रकारों ,ने दी श्रद्धांजलि।

 

*गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की पुण्यतिथि पर कलेक्टर, जनप्रतिनिधियों और गणमान्य नागरिकों ने दी श्रद्धांजलि*

कृष्णा पांडे की रिपोर्ट,

*गुरुदेव की स्मृति में विकसित किया जा रहा है टैगोर वाटिका : कलेक्टर*

गौरेला पेंड्रा मरवाही, 7 अगस्त 2023/ गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की 82 वीं पुण्यतिथि पर आज जिला चिकित्सालय परिसर में स्थापित उनकी मूर्ति पर कलेक्टर  प्रियंका ऋषि महोबिया, सरपंच ग्राम पंचायत सेमरा  गजमती भानु सहित अनेक गणमान्य नागरिकों ने श्रद्धा सुमन अर्पित कर उन्हें याद किया। इस अवसर पर कलेक्टर ने कहा कि टैगोर जी महान व्यक्ति थे। उनकी स्मृति इस क्षेत्र से जुड़ी है। इसे जीवंत बनाए रखने के लिए टैगोर जी 162 वी जयंती के अवसर पर 7 मई 2023 को छत्तीसगढ़ विधानसभा अध्यक्ष डॉ चरणदास महंत ने उनकी मूर्ति का अनावरण किया था। साथ ही उनकी स्मृति में टैगोर वाटिका एवं संग्रहालय का भी शिलान्यास किए थे। कलेक्टर श्रीमती महोबिया ने कहा कि टैगोर वाटिका का निर्माण किया जा रहा है, जिसे शीघ्र ही पूर्ण कर लिया जाएगा। संग्रहालय का भी निर्माण शीघ्र ही किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर अपनी पत्नी मृणानिली देवी के टीवी रोग का इलाज कराने सेनेटोरियम में सितंबर 1902 में आए थे। उन्होंने अपनी पत्नी को स्वस्थ कराने यहां काफी समय बिताए, लेकिन इलाज नहीं हो सका और उनकी पत्नी का निधन हो गया।
रवींद्रनाथ टैगोर ने कई कविता, उपन्यास, नाटक लिखे थे। इतना ही नहीं हमारे देश का राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ की रचना भी उन्होंने की थी। टैगोर द्वारा लिखे गए गीतांजलि काव्य रचना के लिए उन्हें 14 नवंबर 1913 में साहित्य के नोवल पुरस्कार मिला था। उसके बाद वे पुरे विश्व प्रसिद्ध हो गए। वे भारत के प्रथम ऐसे व्यक्ति है, जिन्होंने नोवल पुरस्कार जीता था। उसके बाद 20 दिसंबर 1915 में कलकत्ता की एक यूनिवर्सिटी कॉलेज में रवींद्रनाथ टैगोर जी को साहित्य के लिए ‘डॉक्टर’ नाम की उपाधि दी। इसके अलावा उन्हें 3 जून 1915 में ब्रिटेश द्वारा ‘नाईटहुड’ नाम की उपाधि दी। कुछ समय बाद जब जलियांवाला बाग हत्याकांड 1919 में हुआ तब उन्होंने इस उपाधि का त्याग कर दिया। टैगोर एक महान रचनाकार के साथ ही एक अच्छे इंसान थे, जिन्होंने पूर्वी और पश्चिमी दुनिया के मध्‍य सेतु बनने का कार्य किया था। वे सिर्फ भारत देश के लोकप्रिय नही थे बल्कि विदेशों में उनकी साहित्य, संगीत, कवि और कला को सराहना करने वाले थे। अपने जीवन के अंतिम 4 साल तक वे गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे। गंभीर बीमारी होने के कारण 7 अगस्त 1941 को उनकी मृत्यु हो गई।

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